Thursday, April 29, 2010
इतिहास
इतिहास में ऎसे कई प्रसंग आते हैं जब राजा ने अपने मंत्री के किसी कार्य पर नाराज होकर देश निकाले का दण्ड दिया। कुछ दिन बाद जब राज्य की व्यवस्था गड़बड़ाने लगी तो राजा को अपने उस अनुभवी मंत्री की याद आई। राजा बनवीर ने राज्य के लोभ में अपने चचेरे छोटे भाई, जो राज्य का स्वाभाविक उत्तराधिकारी था, उसकी हत्या का षड्यंत्र रचा। छलपूर्वक राज्य को हस्तगत कर उसके भाई को वधिकों के हाथ में सौंप दिया कि इसे ले जाओ और किसी घोर जंगल में इसका वध कर दो। वधिक आदेश को मानकर उसे दूर एक जंगल में ले गए। वहां उस किशोर भाई ने वधिकों से कहा- "मरने से पूर्व मैं राजा को एक संदेश देना चाहता हूं। मुझे थोड़ा सा कागज और लेखनी दो।" जल्लादों ने उसे दोनों चीजें उपलब्ध करवा दी तो उसने अपने भाई को लिखा- "पृथ्वी के महाप्रतापी राजा मान्धाता चले गए। समुद्र पर पुल बांधने वाले राम भी चले गए, किन्तु यह पृथ्वी किसी के साथ नहीं गई। लगता है कि आपके साथ जाएगी। अन्यथा इस धरती के लिए आप इतना बड़ा जघन्य पाप क्यों करते?" कहा जाता है कि इन तीन-चार पंक्तियों के अन्तिम संदेश ने राजा बनवीर की आंखें खोल दीं। परिणाम को बिना सोचे किया गया कार्य हमेशा दु:खदायी होता है। इसलिए बहुत जरू री है कि कोई कार्य करने से पूर्व उस पर विचार करना चाहिए। अभी गर्मी का मौसम है। यह मौसम अनिवार्य रू प से आवेश वद्धि कर देता है। कोई आदमी काम करके पसीने से तरबतर होकर आता है और कोई उसे अप्रिय बात कह दे तो वह झुंझला पड़ेगा। तुरन्त गुस्से में आ जाएगा।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment