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Saturday, April 2, 2011

“चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, विक्रमी सम्वत २०६८ की हार्दिक शुभकामनाये….”

मान्यवर


“चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, विक्रमी सम्वत २०६८ की हार्दिक शुभकामनाये….”

इसवी सन् १ जनवरी से, आर्थिक वर्ष १ अप्रैल से, हिंदू वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से, व्यापारी वर्ष कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से, शैक्षणिक वर्ष जून से आरंभ होता है । सौर वर्ष, चंद्र वर्ष व सौर-चांद्र वर्ष (लूनी सोलर), इन वर्षोंके भी अलग-अलग वर्षारंभ है । वर्ष बारह महीनोंका ही क्यों होना चाहिए? इसका उत्तर वेदों में है । वेद अति प्राचीन वाङ्‌मय है, इसमें कोई मतभेद नहीं। `द्वादश मासै: संवत्सर:।' ऐसा वेदवचन है । वेदों ने कहा, इसलिए वह जगत्मान्य हुआ । इन सर्व वर्षारंभों में से अधिक योग्य प्रारंभ दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा है । १ जनवरी को वर्षारंभ करने का कोई कारण नहीं है । किसी ने निश्चित किया और वह आरंभ हो गया । इसके विपरीत, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर वर्षारंभ करनेके नैसर्गिक, ऐतिहासिक, आध्यात्मिक कारण हैं ।

• नैसर्गिक: संवत्सरके आसपास पेडों में कोपल उग आते हैं, पेड-पौधे हरे-ताजे दिखाई देते हैं।

• ऐतिहासिक: इस दिन रामने वाली का वध किया। शकों ने प्राचीनकाल में शकद्वीप पर रहने वाली एक जाति हूणों को (एक खानाबदोश जमात । ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में चीन के आसपास इनका मूल निवास स्थान था) पराजित कर विजय प्राप्त की ।

• आध्यात्मिक :

• सृष्टि की निर्मिति: ब्रह्मदेव ने इस दिन सृष्टि का निर्माण किया अर्थात् यहीं से सत्ययुग का आरंभ हुआ। इसी कारण इस दिन वर्षारंभ किया जाता है ।

• प्रांतानुसार उत्सव मनानेकी पद्धति: संवत्सरारंभ महाराष्ट्र में गुढी पाडवा के रूपमें मनाया जाता है। आंध्रमें उसे युगादि (तेलगू नव वर्ष) कहते हैं । दक्षिण भारत में शालिवाहन शक इस दिनसे प्रारंभ होता है।

• साढे तीन मुहूर्तों में एक: संवत्सरारंभ, अक्षय तृतीया व दशहरा, प्रत्येक का एक व कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का आधा, ऐसे साढे तीन मुहूर्त हैं। इन साढे तीन मुहूर्तों की विशेषता यह है, कि अन्य दिनों शुभ कार्य हेतु मुहूर्त देखना पडता है; परंतु इन चार दिनों का प्रत्येक क्षण शुभ मुहूर्त ही होता है ।

हमारे शुभचिन्तक द्वारा प्रेषत पंचाग ग्रहण करे एवम भारत के गॊरव शाली अतीत को याद करते हुये, यह वर्ष आपको परिवार सहित सुख, शांति प्रदान करें

डां. राकेश मिश्र
(सचिव)

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