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Wednesday, March 10, 2010

नवरात्रि में उपवास

 
आगामी 16 मार्च 2010 से चैत्र नवरात्र की शुरुआत हो रही है। इसी दिन से नव-संवत्सर भी आरंभ हो रहा है। नवरात्र में हम शक्ति की देवी दुर्गा की उपासना करते हैं। इस दौरान कुछ भक्तगण नौ दिनों का उपवास रखते हैं, तो कुछ सिर्फ पहले और अंतिम दिन उपवास रखते हैं। दरअसल, त्योहारों खासकर नवरात्र में उपवास का विशेष महत्व है। उपवास में 'उप' का अर्थ है 'निकट' और 'वास' का मतलब 'निवास' करना। कुल मिलाकर यह माना जाता है कि उपवास के माध्यम से ईश्वर से निकटता और बढ़ जाती है।
[क्या कहते हैं लोग] हालांकि आज की बदलती जीवनशैली में अधिकांश लोगों का यह भी मानना है कि उपवास के बहाने वे खुद को आत्मिक रूप से शुद्ध करने का प्रयास भी करते हैं-
* सृष्टि मानती हैं कि उपवास रखने से उन्हें पवित्रता का अहसास होता है और वे स्वयं को परमात्मा के अधिक निकट पाती हैं।
* कामना कहती हैं कि भूखे रहकर ही दूसरों की भूख को समझा जा सकता है।
* दिनेश के अनुसार, शरीर और आत्मा को एकाकार करने का माध्यम है उपवास।
[मन पर नियंत्रण] आज का जीवन इतना जटिल हो गया है कि मनुष्य जीवन की आपाधापी से आध्यात्मिक कार्र्यो के लिए समय नहीं निकाल पाता। वह ऑफिस और घर की जिम्मेदारियों को निभाने के फेर में एकाग्रचित्ता नहीं हो पाता। उपवास का प्रयोजन इसीलिए किया गया है, ताकि जीभ और मन पर नियंत्रण कर अपने मन-मस्तिष्क को केंद्रित किया जा सके।
[आध्यात्मिक और व्यावहारिक अर्थ]
हिंदू धर्म में उपवास का सीधा अर्थ है,आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति के लिए अपनी भौतिक आवश्यकताओं का परित्याग करना। इससे हमारे शरीर और आत्मा के बीच एक रागात्मक संबंध स्थापित हो पाता है। दूसरे शब्दों में कहें, तो उपवास केवल ईश्वर के प्रति समर्पण ही नहीं, बल्कि स्वयं को अनुशासित करने का उपकरण भी है। सामान्यत: भोजन लेने से हमारी इंद्रिया तृप्त होती हैं। कम मात्रा में भोजन या फलाहार लेकर हम इंद्रियों पर नियंत्रण करना सीखते हैं। हकीम लुकमान का कथन है, 'जब आपका पेट भरा होता है, तो आपकी बुद्धि सोने लगती है।' माना जाता है कि पेट भरा होने पर विवेक मौन हो जाता है। इसलिए उपवास बहुत जरूरी है।
आर्ट ऑफ लिविंग के अनुसार, उपवास करने से हमारे तन-मन दोनों का शुद्धीकरण होता है। हमारा दिमाग पाचक अग्नि की तरफ नहीं जा पाता है। ऊर्जा संग्रहण से हमारी अलर्टनेस बढ़ती है और हम ध्यान केंद्रित कर पाते हैं।
[मन पर प्रभाव] हमारे शरीर में 80 प्रतिशत जल और 20 प्रतिशत ठोस तत्व हैं। ज्योतिष के अनुसार, पृथ्वी के समान ही चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण हमारे शरीर के अंदर मौजूद द्रव्य को प्रभावित करता है, जिससे हम भावनात्मक स्तर पर अस्थिर हो जाते हैं। ऐसे में उपवास विषनाशक औषधि के रूप में काम करता है। यह शरीर में मौजूद अम्ल को कम करता है, जिससे व्यक्ति स्वस्थचित्ता अनुभव करता है।
मनोवैज्ञानिक आरती आनंद मानती हैं कि हम उपवास अच्छी भावना के साथ रखते हैं। हम स्वयं और दूसरों के बारे में सकारात्मक सोचते हैं। अच्छी प्रेरणा के कारण हम थकान नहीं, बल्कि शांति महसूस करते हैं और नींद भी अच्छी आती है।
[तन पर असर] आयुर्वेद भी उपवास के महत्व को रेखांकित करता है। पुरानी भारतीय चिकित्सा पद्धति के अनुसार, पाचन तंत्र में विषैले पदार्थ जमा होने के कारण ही कई रोग होते हैं। उपवास से हमारे पाचन तंत्र को आराम मिलता है और पूरा बॉडी सिस्टम क्लीन हो जाता है।
डायटीशियन शेरोन अरोड़ा मानती हैं कि उपवास से शरीर के टॉक्सिंस की धुलाई हो जाती है, लेकिन हमें दिन भर में थोड़ा-थोड़ा फलाहार छ: से सात बार जरूर करना चाहिए। दरअसल, हमारे शरीर को कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, मिनरल्स और विटामिंस की जरूरत होती है। साथ ही, हमारे शरीर में अम्ल बनता रहता है। इसलिए हमें कार्बोहाइड्रेट की पूर्ति के लिए कुट्टू के आटे की सामग्री, विटामिंस और मिनरल्स के लिए फ्रूट्स, प्रोटीन व कैल्शियम के लिए दूध, पनीर और तेल की पूर्ति के लिए ड्राई फ्रूट्स लेना चाहिए। उपवास के दौरान पानी अधिक मात्रा में पिएं। यदि कोई व्यक्ति नवरात्र में एक दिन से अधिक का उपवास करता है, तो ऐसे में नमक यानी सोडियम की कमी को पूरा करने के लिए नारियल पानी अच्छा विकल्प हो सकता है।
[वर्ष में दो बार नवरात्र क्यों]
नवरात्र साल में दो बार मनाया जाता है। एक गर्मी की शुरुआत चैत्र में और फिर एक ठंड की समाप्ति पर आश्विन माह में। गर्मी और जाड़े के मौसम मे सौर ऊर्जा हमें सबसे अधिक प्रभावित करती है, क्योंकि फसल पकने, वर्षा जल के लिए बादल संघनित होने, ठंड से राहत देने आदि जैसे जीवनोपयोगी कार्य इस दौरान सम्पन्न होते हैं। इसलिए पवित्र शक्तियों की आराधना करने के लिए यह समय सबसे अच्छा माना जाता है। प्रकृति में बदलाव के कारण हमारे शरीर और दिमाग में भी परिवर्तन होता है, इसलिए शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए हम उपवास रखकर शक्ति की पूजा करते हैं।

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